मनुष्य कौन ? मनुष्य उसी को कहना कि जो मननशील होकर स्वात्मवत अन्यों के सुख दुःख और हानि-लाभ को समझे!! अन्यायकारी बलवान से भी न डरे और धर्मात्मा निर्बल से भी डरता रहे !! इतना ही नहीं किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से धर्मात्माओं की - कि चाहे वे महा अनाथ, निर्बल और गुणरहित हों -उन कि रक्षा, उन्नति, प्रियाचर्ण और अधर्मी चाहे चक्रवर्ती सनाथ, महाबलवान और गुणवान भी हो तथापि उसका नाश, अवनति और अप्रियाचरण सदा किया करे अर्थात जहाँ तक हो सके वहां तक अन्यायकारीओं के बल की हानि और न्यायकारिओं के बल की उन्नति सर्वथा किया करे!!
इस काम में चाहे उस को कितना ही दारुण दुःख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भले ही जावें, परन्तु इस मनुष्य रूप धर्म से पृथक कभी न होवे !!
------ महर्षि दयानंद सरस्वति
इस काम में चाहे उस को कितना ही दारुण दुःख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भले ही जावें, परन्तु इस मनुष्य रूप धर्म से पृथक कभी न होवे !!
------ महर्षि दयानंद सरस्वति
मृत्यु पत्र - अमर बलिदानी वीर नाथूराम गोडसे
प्रिय बन्धो चि. दत्तात्रय वि. गोडसे मेरे बीमा के रूपिया आ जायेंगे तो उस रूपिया का विनियोग अपने परिवार के लिए करना ।
रूपिया 2000 आपके पत्नी के नाम पर , रूपिया 3000 चि. गोपाल की धर्मपत्नी के नाम पर और रूपिया 2000 आपके नाम पर । इस तरह से बीमा के कागजों पर मैंने रूपिया मेरी मृत्यु के बाद मिलने के लिए लिखा है ।
मेरी उत्तरक्रिया करने का अधिकार अगर आपकों मिलेगा तो आप अपनी इच्छा से किसी तरह से भी उस कार्य को सम्पन्न करना । लेकिन मेरी एक ही विशेष इच्छा यही लिखता हूँ ।
अपने भारतवर्ष की सीमा रेखा सिंधु नदी है जिसके किनारों पर वेदों की रचना प्राचीन द्रष्टाओं ने की है ।वह सिंधु नदी जिस शुभ दिन में फिर भारतवर्ष के ध्वज की छाया में स्वच्छंदता से बहती रहेगी उन दिनों में मेरी अस्थि छोटा सा हिस्सा उस सिंधु नदी में बहा दिया जाएँ ।
मेरी यह इच्छा सत्यसृष्टि में आने के लिए शायद ओर भी एक दो पीढियों का समय लग जाय तो भी चिन्ता नहीं । उस दिन तक वह अवशेष वैसे ही रखो। और आपके जीवन में वह शुभ दिन न आया तो आपके वारिशों को ये मेरी अन्तिम इच्छा बतलाते जाना । अगर मेरा न्यायालीन वक्तव्य को सरकार कभी बन्धमुक्त करेगी तो उसके प्रकाशन का अधिकार भी मैं आपको दे रहा हूँ ।
मैंने 101 रूपिया आपकों आज दिये है जो आप सौराष्ट्र सोमनाथ मन्दिर पुनरोद्धार हो रहा है उसके कलश के कार्य के लिए भेज देना ।
वास्तव में मेरे जीवन का अन्त उसी समय हो गया था जब मैंने गांधी पर गोली चलायी थी। उसके पश्चात मानो मैं समाधि में हूँ और अनासक्त जीवन बिता रहा हूँ। मैं मानता हूँ कि गांधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ट उठाएँ , जिसके लिए मैं
उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ , किन्तु देश के इस सेवक को
भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था।
उनकी सेवा के प्रति और उनके प्रति नतमस्तक हूँ , किन्तु देश के इस सेवक को
भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि का विभाजन करने का अधिकार नहीं था।
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता और नहीं चाहता हूँ कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करें । अपने देश के प्रति भक्ति-भाव रखना अगर पाप है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह पाप मैंने किया है । अगर वह पुण्य है तो उससे जनित पुण्य पर मेरा नम्र अधिकार है । मुझे विश्वास है की मनुष्यों के द्वारा स्थापित न्यायालय से ऊपर कोई न्यायालय हो तो उसमें मेरे कार्य को अपराध नहीं समझा जायेगा । मैंने देश और जाति की भलाई के लिए यह कार्य किया है। मैंने उस व्यक्ति पर गोली चलाई जिसकी नीतियों के कारण हिन्दुओं पर घोर संकट आये और हिन्दू नष्ट हुए। मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य 'नीति की दृष्टि ' से पूर्णतया उचित है । मुझे इस बात में लेशमात्र भी सन्देह नहीं की भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे ।
कुरूक्षेत्र और पानीपत की पावन भूमि से चलकर आने वाली हवा में अन्तिम श्वास लेता हूँ । पंजाब गुरू गोविंद की कर्मभूमि है । भगत सिंह , राजगुरू और सुखदेव यहाँ बलिदान हुए । लाला हरदयाल तथा भाई परमानंद इन त्यागमूर्तियों को इसी प्रांत ने जन्म दिया । उसी पंजाब की पवित्र भूमि पर मैं अपना शरीर रखता हूँ । मुझे इस बात का संतोष है । खण्डित भारत का अखण्ड भारत होगा उसी दिन खण्डित पंजाब का भी पहले जैसापूर्ण पंजाब होगा । यह शीघ्र हो यही अंतिम इच्छा..........................................
“मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धु नदी में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना…”।
नाथूराम गोड़से और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी राख उनके परिवार वालों को नहीं सौंपी गई थी। जेल अधिकारियों ने अस्थियों और राख से भरा मटका रेल्वे पुल के उपर से घग्गर नदी में फ़ेंक दिया था। दोपहर बाद में उन्हीं जेल कर्मचारियों में से किसी ने बाजार में जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह खबर एक स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई। इन्द्रसेन उस वक्त “द ट्रिब्यून” के कर्मचारी भी थे। शर्मा ने तत्काल दो महासभाईयों को साथ लिया और दुकानदार द्वारा बताई जगह पर पहुँचे। उन दिनों नदी में उस जगह सिर्फ़ छ्ह इंच गहरा ही पानी था, उन्होंने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर स्थानीय कॉलेज के एक प्रोफ़ेसर ओमप्रकाश कोहल को सौंप दिया, जिन्होंने आगे उसे डॉ एलवी परांजपे को नाशिक ले जाकर सुपुर्द किया। उसके पश्चात वह अस्थि-कलश 1965 में नाथूराम गोड़से के छोटे भाई गोपाल गोड़से तक पहुँचा दिया गया, जब वे जेल से रिहा हुए। फ़िलहाल यह कलश पूना में उनके निवास पर उनकी अन्तिम इच्छा के मुताबिक सुरक्षित रखा हुआ है।
भाई जरा उनका पता भी बता देना ताकि मैं उस महान आत्मा के अवशेष के दर्शन कर सकूँ।
ReplyDeleteमेरे इस पोस्ट का उद्देश्य किसी की भावना के साथ के साथ खिलवाड़ करना या दुःख पहुचाना नहीं अपितु सच्चाई को जनता के सामने रखना है इतिहास के बहुत से अन्छुवे पहलू ऐसे हैं जो गांधी परिवार की राजनितिक स्वार्थ की आंधी के भेंट चढ़ चुके हैं
ReplyDeleteसाथिओं इतिहास की उम्र केवल 65 वर्ष नहीं होती. पिछले 65 वर्षों से इस देश के जनमानस पर सरकारी शिकंजे वाले संचार माध्यमों एवं शैक्षिक संस्थानों के माध्यम से एक परिवार विशेष का कांग्रेसी जमावड़ा ही बलात काबिज़ रहा है.
ReplyDeleteपिछले कुछ वर्षों से देश के जनमानस ने उसके इस कब्ज़े से अपनी मुक्ति के प्रयास प्रारम्भ किये हैं.
इसमें उसे अप्रत्याशित सफलता भी मिली है विशेष रूप से सूचना का अधिकार कानून इसमें अधिकतर मददगार है !
इस कुटिल कांग्रेसी कब्ज़े से मुक्ति का पूर्ण लक्ष्य भी अब ज्यादा दूर नहीं है.
देश का जनमानस जिस दिन अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करेगा उसी दिन इतिहास की "अदालत" अपने एक नए और निष्पक्ष फैसले का शंखनाद करेगी,
उसका वह फैसला आगे आने वाली पीढ़ियों को यह सच बतायेगा की गाँधी वध के आरोप में 15 नवम्बर = १९४९ के दिन फांसी के तख़्त पर चढ़ा नाथूराम गोडसे नाम का व्यक्ति देशघाती "दानव" था या "राष्ट्रवादी महामानव"...??
आपने बहुत अच्छा लिखा है ! बधाई! आपको शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपका हमारे ब्लॉग http://tv100news4u.blogspot.com/ पर हार्दिक स्वागत है!
आदरणीय भाई श्रीसंदीप पंवार जी वीर महात्मा नाथूराम गोडसे जी का अस्थिकलश पूणे में उनके भतीजे श्री नाना गोडसे जी ( श्रीगोपाल गोडसे के पुत्र ) के घर पर रखा हुआ है । नाना जी के घर का पता है - आनंदी विलास 1206/28 ब , शिवाजी नगर , पुणे - 411008 तथा व्यवसायिक पता है - 1206/1B, Butil Patil Chambers, J. M. Road, Shivajinagar, Pune 411004
ReplyDeleteTel. : 25533925, 25532176
Email : abha@pn.vsnl.net.in
नोट - शिवाजी नगर में संभाजी पार्क के सामने से एक दिशा मार्ग पर नानाजी का घर आनंदी विलास स्थित है । अस्थिकलश के दर्शनार्थ जाने से पूर्व नाना गोडसे जी से फोन पर समय ले लेना ज्यादा अच्छा होगा । नाना जी का व्यक्तिगत मोबाईल न. आप मुझसे ईमेल द्वारा ले सकते है । मेरा ईमेल पता है - vishwajeetsingh1008@gmail.com
naman hai is veer krantikaari ko...natmastak hun.
ReplyDeleteइस अमूल्य दस्तावेज को प्रस्तुत करने के लिए आभार।
ReplyDeleteसभी धर्म प्रेमी देश भक्त मित्रों, भाईयों और बहनों को यह सूचित किया जाता है कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह में अग्निवीर एक विशाल शुद्धि कार्यक्रम करने जा रहा है जिसमें सैकड़ों मुसलमान और ईसाई भाइयों बहनों को वापस वैदिक (हिन्दू) धर्म में लाया जाएगा. अपने सदियों से बिछुड़े भाइयों बहनों की घर वापसी की सूचना देते हुए हमें बहुत हर्ष हो रहा है. आप सब से प्रार्थना है कि agniveer.com पर जाकर अधिक सूचना प्राप्त करें और इस मानवता के कल्याणकारक कार्य में तन मन धन से सहयोग करें. ईमेल से अति शीघ्र संपर्क करें vedas@agniveer.com पर. ईश्वर धर्म के इस कार्य को करने में हमें बल सामर्थ्य प्रदान करे, यही प्रार्थना है. कृण्वन्तो विश्वमार्यम् http://agniveer.com/6087/shuddhi/
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