बकर ईद ( ईद - उल - जुहा ) त्याग और गौ पूजा का महान पर्व है , जो त्याग के महिमावर्द्धन और गौ वंश के संरक्षण के लिए मनाया जाता है । त्याग की प्रेरणा के लिए हजरत इब्राहीम के महान त्याग को याद किया जाता है और गौ पूजा के लिए प्राचीन अरबी समाज की समृद्ध वैदिक संस्कृति को । बकरीद अर्थात बकर + ईद , अरबी में गाय को बकर कहा जाता है , ईद का अर्थ पूजा होता है । जिस पवित्र दिन गाय की सेवा करके पुण्य प्राप्त किया जाना चाहिए , उस दिन ईद की कुर्बानी देने के नाम पर विश्वभर में लाखों निर्दोष बकरों , बैलों , भैसों , ऊँटों आदि पशुओं की गर्दनों पर अल्लाह के नाम पर तलवार चला दी जाएगी , वे सब बेकसूर पशु धर्म के नाम पर कत्ल कर दिए जायेगे ।
कुर्बानी की यह कुप्रथा हजरत इब्राहीम से सम्बंधित है । इस्लामी विश्वास के अनुसार हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेने के लिए स्वयं अल्लाह ने उनसे त्याग - कुर्बानी चाही थी । हजरत इब्राहीम ज्ञानी और विवेकवान महापुरूष थे । उनमें जरा भी विषय - वासना आदि दुर्गुण नहीं थे , जब दुर्गुण ही नहीं थे तो त्यागते क्या ? उन्हें मजहब प्रचार के हेतु से पुत्र मोह था , अतः उन्होंने उसी का त्याग करने का निश्चय किया । मक्का के नजदीक मीना के पहाड़ पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल को बलि - वेदी पर चढाने से पहले उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली । जब बलि देने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने खड़ा देखा । वेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था ।
त्याग के इस महान पर्व को धर्म के मर्म से अनजान स्वार्थी मनुष्यों ने आज पशु - हत्या का पर्व बना दिया है । लगता है कि आज के मुस्लिम समाज को भी अल्लाह पर विश्वास नहीं है तभी तो वे अपने पुत्रों की कुर्बानी नहीं देते बल्कि एक निर्दोष पशु की हत्या के दोषी बनते है । यदि बलि देनी है तो बलि विषय वासनाओं , इच्छाओं और मोह आदि दुर्गुणों की दी जानी चाहिए , निर्दोष निरीह पशुओं की नहीं । पशु बलि न तो इस्लाम के अनिर्वाय स्तम्भों में से एक है और न ही मुसलमानों के लिए अनिवार्य कही गयी है । पशु हत्या के बिना भी एक पक्का मुसलमान बना जा सकता है । इस्लाम का अर्थ शान्ति है तो ईद के अवसर पर निर्दोष पशुओं की हत्या का चीत्कार क्यों ?
जब एक पशु किसी मनुष्य को मारता है तो सभी लोग उसको दरिंदा कहते है , और जब एक मनुष्य किसी पशु को मारकर या मरवाकर उसकी लाश को मांस के नाम से खाता है तो आधुनिक बुद्धिजीवी मनुष्य उसको दरिंदा न कहकर मांसाहारी कहते है । क्या मांस किसी पशु की हत्या किए बिना प्राप्त हो जाता है ? अल्लाह के नाम पर , धर्म के नाम पर पशु बलि व मांसाहार की दरिंदगी को छोड़कर स्वस्थ और सुखद शाकाहारी जीवन अपनाओं ।
शाकाहार विश्व को भूखमरी से बचा सकता है । आज विश्व की तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के सामने खाद्यान्न की बड़ी समस्या है । एक कैलोरी मांस को तैयार करने में दस कैलोरी के बराबर माँस की खपत हो जाती है । यदि सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो पृथ्वी के सीमित संसाधनों का उपयोग अच्छी प्रकार से हो सकता है और कोई भी मनुष्य भूखा नहीं रहेगा क्योंकि दस गुणा मनुष्यों को भोजन प्राप्त हो सकेंगा । कुर्बानी की रस्म अदायगी के लिए सोयाबीन अथवा खजूर आदि का उपयोग किया जा सकता है ।
बकर ईद के अवसर पर गौ आदि पशुओं के संरक्षण का संकल्प लिया जाना चाहिए । हदीस जद - अल - माद में इब्न कार्य्यम ने कहा है कि " गाय के दूध - घी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह सेहत के लिए फायदेमंद है और गाय का मांस सेहत के लिए नुकसानदायक है । "
ईश्वर पशु - हत्यारों को सद्बुद्धि प्रदान करे और वे त्याग एवं गौ पूजा के इस पवित्र पर्व बकर ईद के तत्व को समझकर शाकाहारी और सह - अस्तित्व का जीवन जीने का संकल्प लें , हार्दिक शुभकामनाएँ ।
- विश्वजीत सिंह
कुर्बानी की यह कुप्रथा हजरत इब्राहीम से सम्बंधित है । इस्लामी विश्वास के अनुसार हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेने के लिए स्वयं अल्लाह ने उनसे त्याग - कुर्बानी चाही थी । हजरत इब्राहीम ज्ञानी और विवेकवान महापुरूष थे । उनमें जरा भी विषय - वासना आदि दुर्गुण नहीं थे , जब दुर्गुण ही नहीं थे तो त्यागते क्या ? उन्हें मजहब प्रचार के हेतु से पुत्र मोह था , अतः उन्होंने उसी का त्याग करने का निश्चय किया । मक्का के नजदीक मीना के पहाड़ पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल को बलि - वेदी पर चढाने से पहले उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली । जब बलि देने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने खड़ा देखा । वेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा हुआ था ।
त्याग के इस महान पर्व को धर्म के मर्म से अनजान स्वार्थी मनुष्यों ने आज पशु - हत्या का पर्व बना दिया है । लगता है कि आज के मुस्लिम समाज को भी अल्लाह पर विश्वास नहीं है तभी तो वे अपने पुत्रों की कुर्बानी नहीं देते बल्कि एक निर्दोष पशु की हत्या के दोषी बनते है । यदि बलि देनी है तो बलि विषय वासनाओं , इच्छाओं और मोह आदि दुर्गुणों की दी जानी चाहिए , निर्दोष निरीह पशुओं की नहीं । पशु बलि न तो इस्लाम के अनिर्वाय स्तम्भों में से एक है और न ही मुसलमानों के लिए अनिवार्य कही गयी है । पशु हत्या के बिना भी एक पक्का मुसलमान बना जा सकता है । इस्लाम का अर्थ शान्ति है तो ईद के अवसर पर निर्दोष पशुओं की हत्या का चीत्कार क्यों ?
जब एक पशु किसी मनुष्य को मारता है तो सभी लोग उसको दरिंदा कहते है , और जब एक मनुष्य किसी पशु को मारकर या मरवाकर उसकी लाश को मांस के नाम से खाता है तो आधुनिक बुद्धिजीवी मनुष्य उसको दरिंदा न कहकर मांसाहारी कहते है । क्या मांस किसी पशु की हत्या किए बिना प्राप्त हो जाता है ? अल्लाह के नाम पर , धर्म के नाम पर पशु बलि व मांसाहार की दरिंदगी को छोड़कर स्वस्थ और सुखद शाकाहारी जीवन अपनाओं ।
शाकाहार विश्व को भूखमरी से बचा सकता है । आज विश्व की तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के सामने खाद्यान्न की बड़ी समस्या है । एक कैलोरी मांस को तैयार करने में दस कैलोरी के बराबर माँस की खपत हो जाती है । यदि सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो पृथ्वी के सीमित संसाधनों का उपयोग अच्छी प्रकार से हो सकता है और कोई भी मनुष्य भूखा नहीं रहेगा क्योंकि दस गुणा मनुष्यों को भोजन प्राप्त हो सकेंगा । कुर्बानी की रस्म अदायगी के लिए सोयाबीन अथवा खजूर आदि का उपयोग किया जा सकता है ।
बकर ईद के अवसर पर गौ आदि पशुओं के संरक्षण का संकल्प लिया जाना चाहिए । हदीस जद - अल - माद में इब्न कार्य्यम ने कहा है कि " गाय के दूध - घी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह सेहत के लिए फायदेमंद है और गाय का मांस सेहत के लिए नुकसानदायक है । "
ईश्वर पशु - हत्यारों को सद्बुद्धि प्रदान करे और वे त्याग एवं गौ पूजा के इस पवित्र पर्व बकर ईद के तत्व को समझकर शाकाहारी और सह - अस्तित्व का जीवन जीने का संकल्प लें , हार्दिक शुभकामनाएँ ।
- विश्वजीत सिंह
aadarniy sir
ReplyDeletemain aapki baat se purntaya sahmat hun.bahut hi sateek baat kahi hai aapne
sadar dhanyvaad sahit
poonam