हमें तो महर्षि स्वामी दयानंद की उपकार मानना चाहिए .उन्होंने ही हिन्दुओं को अपने देश और धर्म के 
प्रति कटिबद्ध होने का आन्दोलन चलाया था.वर्ना हिन्दू ही खुद को हिन्दू कहलाने से लज्जा महसूस करते थेजो भी आता था हिन्दू धर्म पर आरोप लगा देता थाऔर हिन्दू चुप रह जाते थे.जब हिन्दू अपने धर्म ग्रंथो को ठीक से नहीं जानते तो और दूसरों के धर्म ग्रंथों की बात तो दूर रही.  फिर हिन्दू  सटीक जवाब  कैसे दे सकते हैं.
क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने शुद्र तपस्वी शम्बूक का वध किया था 
 कई बार मैंने विभिन्न पत्रिकाओं में पढ़ा है की राम ने दलित तथा शुद्र होने की वजह से तपस्वी शम्बूक का वध कर दिया और इसी आधार पे आज के हमारे आधुनिकता वादी तथाकथित दलितों के मसीहा श्री राम पर व्यर्थ का दोषारोपण करते हैं और हमारे विश्व हिन्दू परिषद् , आर एस एस,  बजरंग दल के तथाकथित  हिंदूवादी संगठन जाने क्यों इन मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते है. इसी तरह के गलत बातों को लेकर लगातार हमारे धार्मिक ग्रंथों पर प्रहार किये जाते है किन्तु ये उन गलत बातों को सुधारने का बिलकुल प्रयत्न नही करते तथा ये लगातार अंध विश्वास का पोषण ही करते अधिक दिखाई पड़ते हैं.
आज वो हमारा धर्म सुधारक संस्था आर्यसमाज भी न जाने कहाँ सो गया है जो पहले कभी सबसे आगे बढ़ के ऐसे लोगों को मुह तोड़ जबाब दिया करता था . 
जिस मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को सारा भारत एक आदर्श मानता है क्या वे ऐसा निंदनीय कार्य कर सकते हैं ?
सबसे पहले हमें ये जानना होगा की ये प्रसंग है कहाँ पर, तो यह प्रसंग भवभूति द्वारा रचित उत्तर रामायण में है तथा इसके तीसरे चरण में शम्बूक वध का उल्लेख है. यह पूरा रामायण काव्य में लिखित है.
ये कथा संक्षेप में इस प्रकार है एक वृद्ध ब्राह्मन अपने पुत्र का शव लेकर राजा श्री राम के पास आया तथा उनसे शिकायत की कि शम्बूक नाम के शुद्र ने अपने तपस्या  के लिए उनके पुत्र का वध कर दिया है. ये सुन कर राम शम्बूक के पास जाते है तथा उसका वध कर देते हैं. जिसके परिणाम स्वरुप शम्बूक एक दिव्य पुरुष में बदल जाता है तथा ब्राह्मन को भी अपना पुत्र प्राप्त हो जाता है.        
अब मेरा प्रश्न है उन तथाकथित आधुनिकता वादिओं से क्या वे अवैज्ञानिक, निराधार चमत्कार, तथा अंधविश्वास को मानते हैं ?
उस काल में शुद्र आदि नाम जाति के आधार पे नही अपितु कर्म के आधार पे संबोधित किये जाते थे. जिस तरह ब्राह्मन पुत्र रावण को राक्षस के रूप में.  अतः यहाँ शम्बूक जाति वाचक संज्ञा नहीं अपितु कर्म है.
 राम शम्बूक के पास जाते है तथा उसका वध कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरुप शम्बूक एक दिव्य पुरुष में बदल जाता है.-  इस घटना से ये स्पष्ट होता है की राम ने शम्बूक का वध नही किया अपितु उसके गलत विचारों का वध कर के महान पुरुष बनाया
तथा ब्राह्मन को भी अपना पुत्र प्राप्त हो जाता है.-  अर्थात शम्बूक उस वृद्ध ब्राह्मन को पिता मान कर उसकी सेवा करने लगा.        
इस प्रसंग को यदि हम ध्यान से समझें तो श्री राम ने वही किया जो एक अच्छे राजा को करना चाहिए.
भला इसमें क्या बुरी बात है?
वेदों मेंशूद्रशब्द लगभग बीस बार आया है | कहीं भी उसका अपमानजनक अर्थों में प्रयोग नहीं हुआ है | और वेदों में किसी भी स्थान पर शूद्र के जन्म से अछूत होने ,उन्हें वेदाध्ययन से वंचित रखने, अन्य वर्णों से उनका दर्जा कम होने या उन्हें यज्ञादि से अलग रखने का उल्लेख नहीं है |
अब आप ही सोचें इस प्रसंग से आप क्या निष्कर्ष निकालेंगे? इस प्रसंग को ब्राह्मन तथा शुद्र का प्रसंग बता के जातिवाद का राजनीती करने वाले या तो महामुर्ख हैं या पुर्णतः देशद्रोही जो गलत बात फैला कर समाज में विघटन का प्रयास करते हैं
तथा ऐसे लोगो की वजह से धर्मान्तरण करने वाली विभिन्न संस्थाएं ऐसे निराधार विचारों को चासनी लगा कर दलितों के आगे परोसती हैं तथा व्यापक स्तर पर धर्म परिवर्तन का कार्य करती हैं .
भारत में ईसाई मत के प्रचार के लिए जिस एक हथियार का जमकर प्रयोग किया गया वह है जाति व्यवस्था में व्याप्त जड़ता.
इसी जड़ता को तोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण अभियान चलाए गये. ईसा और ईसाइयत को मुक्ति मार्ग बताकर गांव-गिरांव और आदिवासी इलाकों में चर्च संगठन जमकर धर्मांतरण करवा रहे हैं.
  

12 comments:

  1. मैं भी आर्य समाजी हूँ, और दयानन्द जी ने ज्यादातर बात समाज हित में ही कही गयी है।

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  2. सत्यार्थ प्रकाश की पुन:
    जरुरत है ||


    चहुँ-ओर हाय-हाय, हाथ-पैर खोय-खाय
    खून में लटपटाय, मरा या बेहोश है |

    नहीं काहू से डरत, बम-विस्फोट करत,
    बेकसूर ही मरत, करे जय-घोष है |

    टका-टका बिकाय के, ब्रेन-वाश कराय के,
    आका बरगलाय के, रहा उसे पोस है |

    पब्लिक पूरी पस्त है, सत्ता अस्त-व्यस्त है
    सरपरस्त मस्त है, मौत का आगोश है ||

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  3. स्वामी दयानंद जो ने समाज को एक करने में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है और आज फिर से ऐसे महापुरुषों की जरूरत है समाज को ...

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  4. फिर दिया अवसर आतंकियों ने हम भारतीयों को संवेदनाएं प्रकट करने/कराने का...
    एक और आतंकी हमले को दिया अंजाम...
    दिल्ली हाई कोर्ट के बाहर धमाका...
    अब बयान बाजी शुरू होगी-
    प्रधानमंत्री ...... हम आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देंगे ...
    दिग्गी ...... इस में आर एस एस का हाथ हो सकता है
    चिदम्बरम ..... ऐसे छोटे मोटे धमाके होते रहते है..
    राहुल बाबा ..... हर धमाके को रोका नही जा सकता...
    आपको पता है कि दिल्ली पुलिस कहाँ थी?
    अन्ना, बाबा रामदेव, केजरीवाल को नीचा दिखाने में ?

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  5. तुलसी दासजी का तो कहना है की पुजिये विप्र ज्ञान गुण हीना ,शुद्र न पुजिया ज्ञान प्रवीना ...और ढोल गावर शूद्र (यानि शC /श्ट /ओBC) पशु नारी यह सब ताडन के अधिकारी....
    इस तरह के लोगों ने ही हमारे समाज को और विघटित किया है ,
    दयानंद सरस्वती को पुराणों की निंदा करने के अपराध में जहर देकर मार डाला गया यही तो है हमारा हिन्दू धर्म !!

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  6. बिलकुल सही कहा आपने..
    बहुत अच्छे विचार, धन्यवाद आपको.

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  7. आपने बहुत अच्छे विचार रखे हैं
    सुंदर और भक्तिमय आलेख आपको भी बधाई .

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  8. महर्षि दयानंद जी ने इस दिशा में बहुत कोशिश भी की थी. आप बहुत ही परोपकार का काम कर रहे हैं
    आपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है . जितनी भी तारीफ की जाय कम ही होगा ....
    बहुत आभार!

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  9. सही कहा आपने.. hamare granth likhne walo ne hi hinduo ko baat diya

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  10. aआप इतनी बड़ी बड़ी बातें लिखने के बजाय जाति व्यवस्था को समाप्त करने हेतु कुछ सार्थक कदम क्यों नहीं उठाते ...सिर्फ वेद पुराणों की लकीर पीट पीट कर अपने दायित्वों का निर्वहन कब तक करेंगे आप लोग ...

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  11. अच्छी तरह समझाने के लिए आभार . आपसे सहमत हूँ..

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  12. vishvjeet singh jee bhart mahasabha pr aakr bhut achha lga ,bs yu hi jot jalaye rkhni he sabhi bhaiyo ko

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