अन्ना की गिरफ्तारी भारत में जनतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला









हमेशा सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना चाहिये।
महर्षि दयानंद सरस्वती 

अन्ना की गिरफ्तारी भारत में जनतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला
विगत कई दिनों से अन्ना के देश जागृति मिशन में शामिल होने के कारण मै इन्टरनेट पर समय न दे पाया तथा न अन्य दोस्तों के ब्लॉग पर ही उपस्थित हो पाया | इसके लिए कृपया  आप  मुझ  नाचीज  को क्षमा  करेंगे  |  अभी  शायद अगले  हफ्ते  तक भी  उपस्थित होने का अवसर न मिले | जिस तरह से आज आलोकतांत्रिक तरीके से अन्ना हजारे को पुलिस द्वारा गिरफ्तार  किया गया क्या ये उचित था ? अन्ना की गिरफ्तारी भारत में जनतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला है । सरकार गांधीवादी तरीके से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वालों और भ्रष्टाचार की संस्कृति से देश को उबारने की कोशिश करने वालों के खिलाफ ज्यादती कर रही है । क्या यह सरकारी गुंडों मवालीओं की सरकार है ?  अन्ना हजारे और उनकी टीम की गिरफ्तारी के विरोध में दिल्ली के साथ-साथ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहेहैं। युवा एकत्र होकर हाथ में तिरंगा लिए हुए ' अन्ना हजारे तुम संघर्ष करो , हम तुम्हारेसाथ है ' के नारे लगा रहे हैं। चूंकि पुलिस ने अन्ना को हिरासत में ले लिया है , लिहाजा  जरूरत पड़ने पर हम गिरफ्तारी भी देंगे। अन्ना जैसा इंसान रोज रोज पैदा नही होता जो जन कल्याण के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दे | आज फैसले की घडी है और फैसला हमें करना है की हम अपने बच्चों के लिए कैसा हिन्दुस्तान चाहते है ?  ऐसा दिन रोज रोज नहीं आता जब हम चुनाव कर सकें | इसलिए अगर अन्ना का और स्वच्छ समाज का साथ देना है तो इसे व्यक्त भी  करे की आप किसके साथ है | देश का हर व्यक्ति आज उनके साथ खड़ा है | देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए नींद से जग चुकी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ केवल एक अन्ना हजारे लड़ाई नहीं लड़ रहे , बल्कि हजारों लोग लड़ाई लड़ रहे हैं। केंद सरकार को अन्ना हजारे की बात माननी ही होगी। '' 
आज छिड़ी जंग है
सत्य अपने संग है 
छल के साथ खड़ा हुवा
सामने भुजंग है 
             
जो निहत्थों पर वार करे 
उसे क्यों न कायर कहें
जो सोते हुवे को रौंद दे 
उसे क्यों न डायर कहें

भ्रस्टाचार में जो डूबे खुद 
वो भ्रस्टाचार क्या मिटायेंगे  
छल भरा जिनके दिल में 
वो आचार क्या सिखायेंगे

राम लीला मैदान था 
टूट पड़ा शैतान था
सत्ता के इस खेल में 
सत्ता बना हैवान था

सर पर पहले खूब बैठाया 
छल का ऐसा जाल फैलाया    
कैसा कैसा खेल खिलाया
फिर भी वह उनके हाथ न आया 

सन्यासी पर कलंक लगाया
हाय रे कैसा दुर्दिन आया 
दिग्गी की गीदड़ भभकी देखी 
वाह रे सत्ता तेरी माया

बन्दुक न तलवार है 
सत्य ही अपना हथियार है 
सब्र की इम्तिहान न ले जालिम
हमने मानी अभी न हार है

अब न हो मायूस अन्ना 
हम तुम्हारे साथ हैं
क्या हुवा कमजोर है हम
पर हम तुम्हारे साथ हैं

नपुंसकों की बस्ती वाली
कायर ये सरकार है
खुले आम देखो लुट मची है 
ये कैसी मक्कार है

न्याय की देवी क्या न्याय करेगी  
स्वार्थ की पट्टी बंधी जब आखों पर 
अंजामे गुलसिता क्या होगा 
जब उल्लू बैठे हर शाखों पर 


3 comments:

  1. मदन जी नमस्ते !अपने समय के अनुसार अच्छा विषय उठाया है आपका लेख दिल और दिमाग को झकजोर देता है जब अन्ना हमारे लिए इतना कर रहे है तो हमारा भी कुछ फर्ज बनता है की नहीं !!!

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  2. लो मशालों को जला डाला किसी ने
    भोले थे,अब कर दिया भाला किसी ने
    आग वेवजह कभी घर से निकलती नहीं
    टोलियाँ जत्थे बना,चीख यू चलती नहीं
    रात को भी देखने दो,आज तुम सूरज का जलवा
    जब तपेगी ईट,तभी होश में आएगा तलवा
    तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने
    लो मशालों को जला डाला किसी ने.

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