अपने उद्धार और पतन में मनुष्य स्वयं कारण है , दूसरा कोई नहीं । परमात्मा ने मनुष्य शरीर दिया है तो अपना उद्धार करने के साधन भी पूरे दिये है । इसलिए अपने उद्धार के लिए दूसरे पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं है । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि - अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें । क्योंकि आप ही अपने मित्र है और आप ही अपने शत्रु है ।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि दिव्यभूमि भारतवर्ष में ऐसे असाधारण गुरू आज भी मौजूद है जो लोगों की बेचैनी , व्याकुलता और कुंठा का समाधान साधारण तरीके से करने की क्षमता रखते है । साथ ही ये आध्यात्मिक गुरू लोगों के जीवन को कठिन बनाने वाली चुनौतियों का समाधान भी कर रहे है ।
शिष्य को गुरू की जितनी आवश्यकता रहती है , उससे अधिक आवश्यकता गुरू को शिष्य की रहती है । जिसके भीतर अपने उद्धार की लगन होती है जो अपना कल्याण करना चाहते है तो उसमें बाधा कौन दे सकता है ? और अगर आप अपना उद्धार नहीं करना चाहते तो आपका उद्धार कौन कर सकता है । कितने ही अच्छे गुरू हों , सन्त हों पर आपकी इच्छा के बिना कोई आपका उद्धार नहीं कर सकता ।
गुरू , सन्त और भगवान भी तभी उद्धार करते हैं , जब मनुष्य स्वयं उन पर श्रद्धा - विश्वास करता है , उनको स्वीकार करता है , उनके सम्मुख होता है , उनकी देशनाओं का पालन करता है । अगर मनुष्य उनको स्वीकार न करें तो वे कैसे उद्धार करेंगे ? नहीं कर सकते । स्वयं शिष्य न बने तो गुरू क्या करेगा ? जैसे दूसरा कोई व्यक्ति भोजन तो दे देगा , पर भूख स्वयं को चाहिए । स्वयं को भूख न हो तो दूसरे के द्वारा दिया गया बढिया भोजन भी किस काम का ? ऐसी ही स्वयं में लगन न हो तो गुरू का , सन्त - महात्माओं का उपदेश किस काम का ?
भारत भूमि में गुरू , सन्त और भगवान का कभी अभाव नहीं होता । अनेक सुविख्यात सन्त हो गये , आचार्य हो गये , गुरू हो गये पर अभी तक हमारा उद्धार नहीं हुआ है । इससे सिद्ध होता है कि हमने उनको स्वीकार नहीं किया । अतः अपने उद्धार और अपने पतन में हम ही कारण है । जो अपने उद्धार और पतन में दूसरे को कारण मानता है , उसका उद्धार कभी हो ही नहीं सकता । वास्तव में मनुष्य स्वयं ही अपना गुरू है । इसलिए उपदेश स्वयं को ही दें । दूसरे में कमी न देखकर अपने में ही कमी देखें और उसे दूर करने की चेष्टा करें । तात्पर्य यह है कि वास्तव में कल्याण न गुरू से होता है और न ईश्वर से ही होता है , प्रत्युत हमारी सच्ची लगन से होता है । स्वयं की लगन के बिना तो भगवान भी कल्याण नहीं कर सकते ।
गुरू बनाने से अधिक महत्वपूर्ण है गुरू की देशनाओं पर चलना । यदि गुरू बनाने मात्र से कल्याण हो जाता तो दत्तात्रेय 17 गुरू न बनाते । स्वामी रामतीर्थ ने तो यहां तक कह डाला कि न तो राम तुम्हारा कल्याण कर सकते है न ही कृष्ण । तुम्हें अपना रास्ता स्वयं चुनना होगा और उस पर चलना होगा ।
गुरू की महिमा कौन नहीं जानता ? इसमें कोई संदेह नहीं कि गुरू का समय - समय पर दिशा - निर्देश पाते रहना चाहिए । गुरू तो हमें अध्यात्म का मार्ग दिखाता है , अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । हमें सत्य के मार्ग पर चलने तथा मानसिक विकारों से मुक्ति की युक्ति बताता है । वह हमारा मददगार है । हम उसका सम्मान करें । हम उसको नमन करें । उनके प्रति कृतज्ञ रहें । जहां तक परमात्मा का स्थान है उसे कोई नहीं ले सकता ।
स्वामी सत्यमित्रानंद जी कहते है कि मैं तो तुम्हारी तरह साधक हूँ । आपका विश्वास ही आपकी प्राप्ति है । ऐसे सच्चे महापुरूषों का , सद्गुरूओं का सान्निध्य मिल जाये तो साधक भाग्यशाली है । याद रखों आपका उद्धार गुरू के अधीन है , न सन्त - महात्माओं के अधीन है और न भगवान के अधीन है । अपना उद्धार तो स्वयं के ही अधीन है ।
आज गुरूपूर्णिमा का महापर्व है , गुरू की देशनाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लेने का दिन है । सभी को गुरूपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
- विश्वजीतसिंह
आज गुरूपूर्णिमा का महापर्व है , गुरू की देशनाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लेने का दिन है । सभी को गुरूपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteसभी भारतीय इस दिन को
अपने-अपने तरीके से मनाते है |
सभी को बधाई |
नमस्ते सदा वत्सले ----|
चरण-वंदना |
आज गुरूपूर्णिमा का महापर्व है , गुरू की देशनाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लेने का दिन है । सभी को गुरूपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteविश्वजीत जी! सच्चा गुरु आज कल मिलता कहाँ है भाई |
ReplyDeleteआज कल तो सब पैसे का खेल है | जिसके पास जितना
बड़ा साम्राज्य वह उतना ही बड़ा गुरु है | स्वामी बिरजानंद
जैसे गुरु आज कहाँ हैं जिन्होंने दयानंद जैसा शिष्य पैदा किया
या राम कृष्ण परमहंस जैसे गुरुओं का अभाव है |
आपको गुरुं पूर्णिमा पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
aap सभी को गुरूपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteबधाई भाई मदनजी और विश्वजीत जी सुन्दर और सार्थक आलेख |
ReplyDeleteसभी को गुरूपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भारत के राजनेता भी हिंदुत्व के इस विश्वव्यापी चरित्र को समझें न चाहिए .
ReplyDeleteप्रशंशा के अदिकारी तो आप- है ही .
आज से ३ साल पहले की बात है मैं एन एक न्यूज़ पेपर मे पड़ा था की ब्रिटिश सेना मे गीता का पद करना शुरू किया है . और एक उप लब्धि और बता दू अमेरिका मे आशाराम जी बापू का डाक टिकेट शुरू किया है. जो हिन्दू धर्म के लिए गौरव की बात है.
हमारी सर्कार उन पैर आरोप लगा रही है.
श्री मान जी आप देखने २०१२ मे भारत विश्व गुरु के पद पैर असीं होगा .इस मे तनिक मात्र भी संदेह नहीं है.
ख़ुशी ख़ुशी मे काफी बड़ी टिपनी लिख दी ...
कँवर विक्रांत सिंह
www.kanwarvikrantsingh.blogspot.com
९४१६४-४६२५६
मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
ReplyDeleteआज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
याद रखों आपका उद्धार गुरू के अधीन है , न सन्त - महात्माओं के अधीन है और न भगवान के अधीन है । अपना उद्धार तो स्वयं के ही अधीन है ।
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित बात...
बहुत अच्छा आलेख.